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हर बार और बार-बार
धार कुंद कर देने से
कुल्हाडी का लोहा
मिट्टी नहीं हो जायेगा
इसलिये
थककर या हारकर
सिर थामना या पलों को यूँ ही
भागने देना,
वाहियात है..
जिन्होंने भोथरा किया है
हर बार और बार-बार
कुल्हाडी और कुदाल के लोहे को..
खुद को उगाने के लिये,
लहलहाने के लिये.
इसीलिये जरुरी है
खूब पैना करना और माँजना
अपनी धार को,
उनकी जडों को ही
काट देने के लिये,
खोद देने के लिये..
बुधवार, 24 मार्च 2010
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