बुधवार, 24 मार्च 2010

चेतना की धार

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हर बार और बार-बार

धार कुंद कर देने से

कुल्हाडी का लोहा

मिट्टी नहीं हो जायेगा

इसलिये

थककर या हारकर

सिर थामना या पलों को यूँ ही

भागने देना,

वाहियात है..



जिन्होंने भोथरा किया है

हर बार और बार-बार

कुल्हाडी और कुदाल के लोहे को..

खुद को उगाने के लिये,

लहलहाने के लिये.



इसीलिये जरुरी है

खूब पैना करना और माँजना

अपनी धार को,

उनकी जडों को ही

काट देने के लिये,

खोद देने के लिये..

3 टिप्‍पणियां:

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  2. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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